आनंद

  'आनंद' 

कुसुम खिला  जो  आलय  की फुलवारी में,

मैं छोड़ वह प्रमोद, चला जादुई फुलवारी में।

मैं कितना  मूर्ख  हूं अपना  सुधा  छोड़,

पराया     विष      पीने       चला।


मैं मनोरथ,  कनक  की  करता  रहा,

मेरे पास पड़ी रूपा का आनंद खो गया।

मैं कल  की  चिंता  करता  रहा,

आज  का  आनंद  खो  गया।


जब  मैंने  देखा  आलय  की  फुलवारी,

तब  मैंने  आज  का  आनंद  पाया।

मैं कुसुम  का  पल्लव  देखते  रह गया,

आज  का  आनंद 'मैं' ले  गया।


नारायण सुथार ✍️



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