भुखमरी

(गीतिका छन्द में रचित काव्य)

कुचक्र का कालकूट अब,  पिया  नही  जाता  है।
देश की भुखमरी अब सही, हमें   नही  जाती  हैं।
अब हम को चन्द्रहास को,  कर  में   लेना  होगा।
अब सही पथ पर पेर को,  हमें    बढ़ाना   होगा।।

अब उस राणा सांगा को, याद करना पड़ेगा।
अब हमेें शरीर पर घाव, हमकों खाना होगा।
शत्रु को अब सूर्यपूत्र के, पास भेजना होगा।
अब सागर में भी रास्था, हमें बनाना होगा।।

कलयुग के माई पापी,  आनन्द   ले  रहा   हैं।
बड़ी अमिरी का जीवन, वही  बीता   रहा  हैं।
एक बार महसूस कर तु, जिन्दगी के ताप को।
जो एक झोपड़ी में वह, जिन्दगी  बीता  रहा।।

आज हम भूल बैठे है, भारत   के  वैभव   को।
वीर सत्यवादी राजा,  यहा   रहा    करते    थे।
वह अपने वचन पर अटल, हमेशा  रहा  करते।
एक परिवार सहीत खुद, वह भी बिक जाते थे।।


 (नारायण सुथार )  



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