शत्रुता

                             'शत्रुता'

किसी से शत्रुता मानव लेना नहीं चाहा कर भी ले लेता है। मानव किसी से अपना प्रेम नहीं बिगाड़ना चाहता, परंतु कोई स्वार्थ आने पर मानव अपने प्रेम को बिगाड़ देता और उनसे शत्रुता ले लेता है। इसी कारण शत्रुता मानव का एक स्वाभाविक अंग बन गया है। किसी से शत्रुता लेने का कोई कारण जरुर होता है और वह अपने निज स्वार्थ के लिए होता है। मानव अपने बिना काम के लोगों पर घृणा करता है। परंतु श्रीराम के गुरु वशिष्ठ ने कहा था। घृणा ही पाप हैं और प्रेम ही पुण्य है। लेकिन लोग इस बात को मानने को तैयार नहीं है। दिन प्रतिदिन पाप के भागीदार होते जा रहे हैं।
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एक गांव में तीन सगे भाई रहते थे। वह अपने परिवार में एक साथ रहते थे। एक नाम जगदीश, दूसरे का नाम श्याम, तीसरा देवीलाल था। जगदीश ९वीं कक्षा में पास था लेकिन १०वीं कक्षा में फेल था। श्याम ८वीं कक्षा में फेल था परंतु ९वीं कक्षा में पास था। देवीलाल कभी-कभी ही विद्यालय में जाता था और माध्य के अंतराल तक ही विद्यालय में रहता था परंतु वह ९वीं कक्षा में फेल था। इस प्रकार तीनों भाईयों की शिक्षा पूर्ण हो गई थी।

जब उनकी शिक्षा पूर्ण हो गई तो वे पैसे कमाने के लिए निकल गए। जब वह तीनों भाई बस में जा रहे थे। तब दोपहर हो गई थी उस समय ड्राइवर ने बस रोक कर नाश्ता करने के लिए होटल पर चला गया। तब उन तीनों भाईयों को भी भूख लगी। तब जगदीश ने देवीलाल को कुछ फल  लाने के लिए १०० रुपये दिया। तब देवीलाल एक फल वाले के पास पहुंच गया। ४० रुपये के केले ले लिए और ४० रुपये के अनार ले लिए और २० रुपये अपनी जेब में रख दिया। यह सब कुछ श्याम देख रहा था। जब देवीलाल बस में आया तब जगदीश ने पूछा कितने के फल लाए हो। देवीलाल ने कहा १०० रुपये के फल लाया हूं।श्याम को सब कुछ पता था परंतु उसके सम्मान
के लिए कुछ नहीं बोला लेकिन शत्रुता यहीं से आरंभ हो जाती है।

जब वह तीनों भाई एक शहर में पहुंच गए। कुछ काम की तलाश करते करते एक सेठ के पास पहुंच गए। सेठ से कुछ काम मांगने लगे। सेठ ने उन तीनों भाईयों को अपनी एक होटल में रख लिया। उन तीनों की एक साथ एक माह के १८००० रुपये तय किया। जब होटल पर उनका एक माह पूरा हो गया। तब सेठ ने देवीलाल के हाथ मैं १८००० रुपये दे दिया। तभी देवीलाल ने कहा की हम घर चलकर आपस में हिसाब कर लेंगे। तब तीनों भाईयों ने सोचा कि अब हम घर चलते हैं।

तभी तीनों भाई वहां से रवाना हो गए और बस स्टैंड पर पहुंच गए। कोई कारण होने से बस नहीं आई तब देवीलाल कहता है। हम पैदल चलते हैं। आगे कोई न कोई साधन मिल जाएगा। वह तीनों भाई रास्ते पर चल पड़ते हैं। जब वह एक रास्ते से गुजर रहे थे। तभी देवीलाल को सामने एक कुआं नजर आया। तब देवीलाल के मन में १८००० रुपये का लालच आ गया और विचार किया अगर मैं इन दोनों को कुए मैं गिरा दूं तो यह १८००० रुपये मेरे हो जाएंगे। विचार कर देवीलाल ने कहा चलो हम उस कुएं के पास चलते हैं, प्यास भी लग रही है। तब जगदीश और श्याम ने भी कहा चलो ठीक चलते हैं। जब वह सामने वाले कुएं के पास पहुंच गए और जैसे ही वह पानी निकालने के लिए कुए के अंदर देखने लगे तब देवीलाल ने विचार किया की यह अच्छा मौका हे। मौका देख कर देवीलाल ने श्याम और जगदीश को कुए में गिरा दिया और देवीलाल उस जगह से निकल पड़ा और अपने घर पहुंच गया।

जब देवीलाल अपने घर पहुंचा तब घर वालों ने पूछा वह दोनों कहां है। तब देवीलाल ने कहां की उनका तो किडनेप हो गया। यह सुनते ही परिवार वालों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा ली जब पुलिस जांच करने लगी तब जांच के दौरान पुलिस को देवीलाल पर ही संदेह होने लगा और पुलिस जांच करते करते उस कुएं के पास पहुंच गई तब ईश्वर की कृपा से वह तैरना जानते थे इसलिए वह बच गये वह पानी के पाइप पर लटके  हुए थे तभी पुलिस ने उनको सुरक्षित बच्चा लिया और साफ सबूतों के साथ देवीलाल जेल चला गया।


 (नारायण सुथार )


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