कविता
"कोकिला एक छन्द सुना"
(विजात छन्द में रचित रचना)
कोकिला एक छन्द सुना,
जो छन्द तुम सुनाती हो,
उस छन्द को मनुज सुनता,
कोकिला एक छन्द सुना।
जो भूखा द्वार पर खड़ा,
उसको अन्न नहीं देता,
सुनार को मधु पिलाता,
कोकिला एक छन्द सुना।
भिक्षुक जीवन बड़ा मरियल,
उसके पास अन्न होता,
वह मांगने नहीं आता,
कोकिला एक छन्द सुना।
यह मनुज कितना क्रूर है,
गरीबों से छीनता है,
अमीरों को भेट देता,
कोकिला एक छन्द सुना।
कपड़ों से जन अमीर है,
आज पहचान है कपड़े,
गुण कोई नहीं देखता,
कोकिला एक छन्द सुना।
(नारायण सुथार )
(विजात छन्द में रचित रचना)
कोकिला एक छन्द सुना,
जो छन्द तुम सुनाती हो,
उस छन्द को मनुज सुनता,
कोकिला एक छन्द सुना।
जो भूखा द्वार पर खड़ा,
उसको अन्न नहीं देता,
सुनार को मधु पिलाता,
कोकिला एक छन्द सुना।
भिक्षुक जीवन बड़ा मरियल,
उसके पास अन्न होता,
वह मांगने नहीं आता,
कोकिला एक छन्द सुना।
यह मनुज कितना क्रूर है,
गरीबों से छीनता है,
अमीरों को भेट देता,
कोकिला एक छन्द सुना।
कपड़ों से जन अमीर है,
आज पहचान है कपड़े,
गुण कोई नहीं देखता,
कोकिला एक छन्द सुना।
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 04 जुलाई 2020 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
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