मेरा पथ
मैं धरा के उसी पथ पर चलना चाहता,
जिस पथ पर चलकर गए दिनकर।
मैं आद्य़ोपांत दिनकर रहना चाहता हूं,
मैं शब्दों से विपन्न की पीड़ा गाना चाहता हूं।
कातर के कातिल को सजा दिलाना चाहता,
मानो या नहीं मानो मैं देश का हित चाहता।
कुचक्र के विष को मैं विष पिलाना चाहता,
मैं क्षुधार्त को मैं सुधा पिलाना चाहता हूं।
मैं तम से तड़ाक त्राण तदा चाहता हूं,
जब तमा में दीन की तकदीर जाग उठे।
तमचुर से दीन का सर्वथा त्राण मांगता,
तमचुर से क्रूर का सर्वथा नाश मांगता।
कलि में दीन कांतार का अधखिला फूल है,
मैं दीन को पूर्ण खिला फूल देखना चाहता।
मैं क्रूर का आरति तम देखना चाहता हूं,
मैं इस भ्रष्टाचार का नाश देखना चाहता।
कविता की प्रांजल प्रवाह में बहना चाहता,
कविता का दीप बनकर जलना चाहता हूं।
निर्झर सलिल, सलिला में जाना चाहता है,
मैं कवि कविता में जाना चाहता हूं।
मैं नारायण अब तम से त्राण चाहता हूं,
मैं इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त चाहता हूं।
मैं धरा के उसी पथ पर चलना चाहता,
जिस पथ पर चलकर गए दिनकर।
मैं आद्य़ोपांत दिनकर रहना चाहता हूं,
मैं शब्दों से विपन्न की पीड़ा गाना चाहता हूं।
(नारायण सुथार ✍️)
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