भूखा
याचना कठिन है,
जीना हमारा हक है।
हाय! क्या जीवन है,
जल में मीन प्यासी है।
कौन खाता तेरी रोटी?
कौन तुझे दुःख देता है?
क्या कहूं मालिक मैं,
नेता खा जाते मेरी रोटी।
हाय! क्या वह भी मानुष है,
मूषक से कम नहीं।
ले जाते तेरी रोटी,
वह स्वान से कम नहीं।
वह तो अपना उधर भरते,
अपने चमचों के साथ।
बिना वोटर कार्ड वालों से,
क्या इनको काम है।
तुझे भूख मिटानी है तो,
वोटर कार्ड बनाना होगा।
चुनाव के दिनों में तुझे,
नेता की जय बोलनी होगी।
क्या मालिक वह भगवान है?
क्या सृष्टि का दाता है?
वह भगवान तो नहीं है,
अपने को समझता जरूर है।
(नारायण सुथार✍️)
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