सरपंच साहब

चुनाव का समय था। हमारे गांव के लालू लाल जी भी सरपंच के चुनाव में खड़े हो रहे थे। गरीबों को दारू बांट रहे थे, अपने पसीने की कमाई को बांट रहे थे। मैंने पूछा लालू लाल जी आप चुनाव से पहले इतना खर्चा क्यों कर रहे हैं? लालू लाल जी ने कहा अभी खर्चा कर देने से बाद में नहीं करना पड़ेगा। जब अगले दिन चुनाव था, तब लालू लाल जी और बाकी के खड़े हुए सरपंच सभी जनता के लिए चाय की व्यवस्था कर रखी थी, जिस तरह बकरे को बलि के लिए तैयार किया जाता है, उसी तरह जनता को तैयार किया जा रहा था। अगले दिन शायद लालू लाल जी की मेहनत रंग लाई, अंत में लालू लाल जी सरपंच बन ही गए। लालू लाल जी चुनाव से पहले जबान के पक्के थे, लेकिन चुनाव के बाद नहीं है। चुनाव से पहले लालू लाल जी जनता को हाथ जोड़ रहे थे, अब जनता लालू लाल जी को हाथ जोड़ रही है। चुनाव से पहले खुद गधा बने थे, अब जनता को बना रहे हैं। सरपंच साहब काम अच्छा करवाते हैं, हमारे गांव का नहीं उनके घर का। आज उनका घर तीन मंजिल का है, पहले केवल उनके घर में एक कमरा था। यह सब चुनाव का खेल है। मैं तो कहता हूं देश का प्रधानमंत्री कितना ही ईमानदार क्यों ना हो, जब तक सरपंच ईमानदार नहीं होगा, तब तक जनता को कोई लाभ नहीं मिलने वाला।

ऐसा भ्रष्टाचार मैं सह नहीं सका और एक दिन लालू लाल जी के घर चला गया। लालू लाल जी सोफे पर बैठे बैठे चाय पी रहे थे। मेरे लिए लालू लाल जी ने एक चेयर मंगवाई और कहां आप इस पर बैठ जाइए। मैं उस चेयर पर बैठ गया, लालू लाल जी ने मेरे को चाय नहीं पिलाई थी, जिस तरह वे चुनाव से पहले चाय पिलाते थे। क्योंकि लालू लाल जी अब बड़े आदमी बन गए थे। हमने ही उनको बड़ा आदमी बनाया था। उनके ऊपर अंकुश है, लेकिन वह निरंकुश होकर बैठे थे। मैंने लालू लाल जी से कहा आपने हमारे गांव के लिए क्या किया? आपने हमारे गांव में कुछ भी विकास किया है बताइए। लालू लाल जी गंभीर होकर बोले, गांव में मैंने १५ लाख का खेल मैदान बनवाया है, आपने खेल मैदान के सामने बोर्ड लगा हुआ नहीं देखा हो तो जाकर देख लीजिए। लालू लाल जी मैंने खेल मैदान का बोर्ड पढ़ा है, मेरे को तो नहीं लगता है, आपने उसमें १५ लाख खर्च किए होंगे। केवल चारों तरफ ईंटों की एक लाइन लगी हुई है। कुछ फूल के पौधे उगा रखे हैं। एक पौधा एक लाख का हो, फिर भी १५ लाख नहीं होते हैं। लालू लाल जी जनता को पागल नहीं समझे, जनता ने आपको सरपंच बनाया है, जनता का आपके ऊपर अंकुश है। जब भी जनता का तेज जाग उठेगा, सच कहता हूं लालू लाल जी, यह देश बदल जाएगा। भ्रष्टाचारी नेताओं का नाश हो जाएगा, लालू लाल जी आप अपनी प्रजाति को बचाना चाह कर भी नहीं बचा पाओगे। मेरी बातें सुनकर लालू लाल जी भड़क उठे, तू मुझे राजनीति सिखाएगा। मैं भी उनके घर से निकल कर अपने घर आ गया।

अगली सुबह गांव में मीटिंग हो रही थी। मीटिंग इस बात पर थी, गांव में कोई विकास नहीं हो रहा, कोई सुविधा उपलब्ध नहीं। इस पर सभी लोग अपना-अपना मत प्रकट कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति खड़ा होकर कहने लगा,  हमारे सरपंच कहीं दिखाई नहीं दे रहे है, हमें हमारे सरपंच को इस मीटिंग में बुलाना चाहिए, और उनके सामने अपनी समस्या को प्रकट करना चाहिए। तब लालू लाल जी को इस मीटिंग में बुलाया गया। गांव वाले अपनी समस्या को लालू लाल जी के सामने प्रकट करने लगे, और कहा लालू लाल जी आपने चुनाव से पहले जो वादे किए उनको पूरा कीजिए। लालू लाल जी ने चुनाव से पहले ऐसे कार्य करवाने के वादे किए थे जो सरपंच के हाथ में ने होकर प्रधानमंत्री के हाथ में होता है। लालू लाल जी कुछ देर मोन रहे, फिर बोले मैं अपने वादा अवश्य पूरा करूंगा, पानी की समस्या को भी दूर करूंगा कल ही आपके गांव में पानी का पाइप डलवा दूंगा आपके पानी की समस्या दूर कर दूंगा। अगले चुनाव भी पास आ गए लेकिन लालू लाल जी अभी तक पानी की पाइप लाइन नहीं डलवाई है। फिर वही चुनाव का माहौल आ गया। फिर वही जनता को हलाल करने का समय आ गया। आज लालू लाल जी फिर मुझे मिले, मैंने कहा लालू लाल जी इस बार चुनाव में खड़े होने की नहीं सोची क्या? लालू लाल जी ने कहा एक बार चुनाव लड़ लो फिर जिंदगी मौज मस्ती से जियो।

इन दिनों में रामू काका बड़े सीधे साधे दिख रहे थे, गधे की तरह सरल स्वभाव के नजर आ रहे थे। आजकल रामू काका गांव के सभी लोगों से स्नेह कर रहे थे। बड़े प्रेम से बात कर रहे थे। उनका यह स्नेह देखकर मैं समझ गया, शायद इस बार रामू काका चुनाव लड़ रहे हैं। एक दिन रामू काका मुझे सुबह चौराहे पर मिल गए, मैंने रामू काका से पूछा इस बार क्या आप चुनाव लड़ रहे हैं, रामू काका ने कहा चुनाव क्या लड़ें मैं तो जनता की सेवा करना चाहता हूं। मैंने कहा लालू लाल जी की तरह है। मैं लालू लाल जी की तरह नहीं हूं, मैं तन मन से जनता की सेवा करूंगा। रामू काका चुनाव से पहले लालू लाल जी ने भी ऐसा कहा था, लेकिन लालू लाल जी भी चुनाव के बाद बदल गए थे। लालू लाल जी ने हमारे गांव के लिए कोई भी विकास नहीं करवाया था, केवल अपने घर को तीन मंजिल कर दिया था। मुझे लगता है आप भी अपने घर को तीन मंजिल करना चाहते हो। इसीलिए चुनाव लड़ रहे हो। नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं करना चाहता हूं, मैं तो बस जनता की सेवा करना चाहता हूं। राम काका आपको भी चुनाव के बाद देख लेंगे। रामू काका अपने रास्ते पर चल पड़े मैं अपने रास्ते पर चल पड़ा।

(नारायण सुथार ✍️)

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