माली का बाग

इस कविता में माली भगवान है। बाग यह संसार है।

     'माली का बाग'

एक  मनु   निराश  होकर,
एक   पथ  पर  बैठा  था।
एक पंडित उसी  पथ पर,
दौड़ा    चला   आ  गया।

पंडित उस मनु को समझाने लगा,
अपने  प्रवचन उसे  सुनाने  लगा।
वह पंडित उस मनु की शक्ति को,
अपने  पांडित्य  से  जगाने लगा।

कर्ण   जैसा  दानी  बन  तू,
कबीर  जैसा ज्ञानी  बन तू,
प्रहलाद जैसा भक्त बन तू,
हे  मनु   कुछ  तो  बन  तू।

क्यों  मन  को   निराश  कर  बैठा,
क्यों माली का बाग गंदा कर बैठा।
उस   माली   ने   तुझे    भेजा   है,
कुछ सोच समझ कर  भेजा होगा।

वह    माली   बड़ा   दयालु   है,
मेहनत  का   फल तुरंत देता है।
विलंब   हो  जाता  फल  देने में,
तो कुछ बड़ा ही फल दे देता है।

इस बाग में अनेक  लोग  आते हैं,
लेकिन फल वही तोड़ ले जाते हैं,
जो  अपना  अभिमान  तजि कर,
मेहनत   का  बीज  बो  जाते  हैं।

यह   सुनते   ही   उठ  चला  मनु,
नई उमंग के साथ अपने पथ पर।
उपवन में मेहनत करने लगा मनु,
पसीने  का  बीज  बोने लगा वह।

(नारायण सुथार ✍️)






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