भ्रष्टाचार (वीर रस)

समर की  करो तैयारी  तुम,
तड़ित की तरह  जाग उठो।
जिसमें अति प्रचण्ड बल है,
वही भारत देश का  भूप है।

मन से  दंभ  को  दूर  करके,
खड्ग के धार  लगा लो तुम।
भ्रष्टाचार  का  विनाश करके,
उसके रुधिर से नहा लो तुम।

शुंडाल जैसी भुजा बनाकर,
पाषाण मैं भी पथ बना लो।
तुम अपना पसीना बहाकर,
भ्रष्टाचार को विष पिला दो।

भुजंग  का  विष  तन मैं भर,
भूतनाथ को  प्रणाम कर लो।
मृगेन्द्र का रूप  बनाकर तुम,
भ्रष्टाचार का शिकार कर लो।

एक भुजा मैं  महीधर  उठा,
दूसरी  में  चंद्रहास  उठाओ।
भ्रष्टाचार का  विनाश करके,
उसे महीधर के नीचे दबा दो।

समर की  करो  तैयारी  तुम,
तड़ित  की तरह  जाग उठो।
जिसमें अति  प्रचण्ड बल है,
वही भारत  देश  का भूप है।


 (नारायण सुथार )

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