'भोर का पंछी'

   "भोर का पंछी"

नया जोश  नई उमंग,
के  साथ  चला  पंछी,
नीले  गगन की  ओर,
लक्ष्य को प्राप्त करने।
उड़ान   भरने   लगा,
पसीना   आने  लगा,
फिर भी  रुका  नहीं,
आगे    बढ़ता    रहा,
लक्ष्य को प्राप्त करने।
चारागाह   पर   पहुंचा,
दो-तिनका मुंह में लिए,
फिर     लौट     आया,
फिर    वापस     गया,
फिर दो-तिनका लाया,
फिर  उन  तिनको  से,
सुंदर  सा  घर बनाया।
फिर  सूर्यास्त  हो  गया,
रात  को  चैन  से सोया,
फिर सूर्य उदय हो गया।
फिर नया जोश नई उमंग,
के    साथ    चला   पंछी,
नीले    गगन   की   और,
लक्ष्य   को  प्राप्त  करने।

 (नारायण सुथार )

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