लघु नाटक

 "खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती"

[ सेठ मोहनलाल और उनका नौकर मगनलाल आज एक कमरे में सो रहे थे। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ। बरसात का मौसम। बिजली चमक रही। बादल गरज रहे। तेज हवा चल रही। खिड़की खुली हुई। एक मेज से कुछ कागज इधर-उधर उड रहे। कैलेंडर के उड़ने की आवाज आ रही हे। बाहर से कुछ कुत्ते के भौकने की आवाज आई तब सेठ मोहनलाल की आंखें खुलती है। और कहता है।]
सेठ मोहनलाल ( डरता हुआ ) - मगनलाल मगनलाल उठो।
मगनलाल ( जल्दी-जल्दी तेज आवाज में ) - क्या हुआ सेठ जी।
सेठ मोहनलाल - जरा बाहर जाकर देखो कौन है।
मगनलाल - हां सेठ जी।
[ मगनलाल बाहर जाता है। और देखता है। सामने वाले मकान से कोई आदमी चोरी करके निकल कर भाग रहा था। फिर मगनलाल अंदर जाता है। और कहता है। ]
मगनलाल ( डरा हुआ ) - सेठ जी सामने वाले मकान से कोई आदमी चोरी करके भाग रहा है।
सेठ मोहनलाल - जाओ तुम उस चोर को पकड़ो।
मगनलाल - हां सेेेेठ जी जाता हूं।
[  मगनलाल जाता है। कुछ दूरी तक उस चोर का पीछा करता हे। और चोर को पकड़ लेता है। देखता है तो वह चोर सेठ का पुत्र ही है। यह देखकर मगनलाल चोक जाता है। तब तक पीछे से कुछ चोर आते हैं। वह चोर सेठ को पकड़ लेते हैं। तब सेठ मोहनलाल कहता है। ]
सेठ मोहनलाल ( चिल्लाते हुए ) - मगनलाल बचाओ बचाओ....
[ मगनलाल दौड़ता हुआ आता है। तब तक वह चोर सेठ का धन लेकर भाग जाते हे। सेठ मोहनलाल कागजों को इधर-उधर फेंकने लगता है। तब मगनलाल कहता है। ]
मगनलाल ( डरता हुआ ) - सेठ जी आप पागल हो गए हो क्या! यह क्या कर रहे हो?
सेठ मोहनलाल ( हंसते हुए ) - हा हा हा मैं पागल हो गया। हां
मगनलाल - आप ऐसा क्यों कर रहे हों ?
सेठ मोहनलाल ( रोते हुए ) - मैं लूट गया। मेरा सारा धन चला गया।
मगनलाल - सेठ जी अभी तो आपकी जिंदगी बाकी है। और धन कमा लेना।
सेठ मोहनलाल - अब मैं और धन नहीं कमा सकता।
मगनलाल ( अचानक ) - क्यों ?
सेठ मोहनलाल ( हसते हुए ) क्योंकि मैं पागल हो गया । हा हा हा
मगनलाल ( कमरे से बाहर जाते हुए ) - खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।
  ( पर्दा गिरता है। )


 (नारायण सुथार )
                                                                     
                            

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